राष्ट्रीय महिला आयोग ( NCW ) क्या है?

राष्ट्रीय महिला आयोग

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women, NCW)

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women, NCW) भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत 31 जनवरी 1992 में गठित एक सांविधिक निकाय है।यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू कराती है।

राष्ट्रीय महिला आयोग का इतिहास :-

➡️भारत में महिलाओं की स्थिति पर गठित समिति (CSWI) ने लगभग पाँच दशक पहले शिकायतों के निवारण की सुविधा एवं महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास में तीव्रता लाने हेतु निगरानी कार्यों को पूरा करने के लिये ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की स्थापना की सिफारिश की थी।

➡️महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (1988-2000) सहित अन्य सभी समितियों और आयोगों ने महिलाओं के लिये एक शीर्ष निकाय के गठन की सिफारिश की।

➡️वर्ष 1990 के दौरान, केंद्र सरकार ने गठित किए जाने वाले प्रस्‍तावित आयोग की संरचना, कृत्‍यों, शक्‍तियों आदि के बारे में गैर-सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विशेषज्ञों के साथ परामर्श बैठकें आयोजित कीं।

➡️मई, 1990 में, विधेयक को लोक सभा में Introduced किया गया।

➡️जुलाई 1990 में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विधेयक के बारे में सुझाव प्राप्‍त करने के लिए राष्‍ट्र स्‍तरीय सम्‍मेलन आयोजित किया।

➡️अगस्‍त, 1990 में सरकार अनेक संशोधन लाई और आयोग को सिविल न्‍यायालय की शक्‍तियां प्रदान करने के नए उपबंध पुर:स्‍थापित (Introduced) किए।

➡️विधेयक पारित हुआ और 30 अगस्त, 1990 को राष्‍ट्रपति की स्‍वीकृति मिली।

➡️ राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन 31 जनवरी, 1992 को हुआ जिसकी अध्‍यक्ष श्रीमती जानकी पटनायक थीं।

Note :-
➡️वर्तमान अध्यक्ष:- रेखा शर्मा (7 अगस्त 2018 से)
➡️ मुख्यालय:- नई दिल्ली

राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य :-
➡️इसका प्राथमिक उद्देश्य उपयुक्त नीति निर्माण और विधायी उपायों के माध्यम से महिलाओं को उनके उचित अधिकारों को सुरक्षित करने में सक्षम बनाना और जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता एवं समान भागीदारी हासिल करने में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करना है।

राष्ट्रीय महिला आयोग का कार्य :-
➡️महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना।

➡️उपचारात्मक विधायी सुझावों की सिफारिश करना।

➡️शिकायतों के निवारण को सुगम बनाना।

➡️महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना।

➡️इसने बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त की हैं और त्वरित न्याय प्रदान करने के लिये कई मामलों में स्वत: संज्ञान लिया है।

➡️इसने बाल विवाह, प्रायोजित कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों, पारिवारिक महिला लोक अदालतों के मुद्देको उठाया और कानूनों की समीक्षा की। जैसे:- दहेज निषेध अधिनियम (1961) ,गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (1994) , भारतीय दंड संहिता (1860) इत्यादि।

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